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MAA KI JINDAGI

  
        मां की जिंदगी 

जिंदगी हाय  रे----------- जिंदगी।
गांव मुहल्लों में झुग्गी-झोपड़ियों में मैंने घर की दहलीज़ों पर टुटती-बिखरती पल -पल घुंटती खुद को कोसती हुई देखी है जिंदगी।
                दो रोटीयों की आस में आंखों में आशु लिए दिन भर बैठी गालियों के डर से सहमीं  ललचाई हुई नज़रों  से राह ताकती हुई जिंदगी।
             जिंदगी हाय रे --------------------जिंदगी।
अपने ही कंधों पर अपने ही जिंदगी का बोझ उठाए। 
तीन पैरों में चलती हुई देखी है जिंदगी।
                         जिन्हें अपने पलकों में बिठाया ह्रदय से 
  लगाया उन्हीं की आंखों में शूल की भांति चुभती हुई जिंदगी।
जिंदगी हाय रे --------------------जिंदगी।
        ‌जिन्हें अपना माना जिनके लिए अपने सपनों और ख़्वाहिशों को कुचल डाला जिनकी जिंदगी बनाने के लिए अपनी पूरी जिंदगी गंवा दी उन्हीं के सामने कांपती लड़खड़ाती हुई आवाज़ में अपनी इच्छा कहती बतलाती हुई जिंदगी।
              यदि कभी राह चलते पांव फिसल कर गिर गई तो दिन -रात तानों के बीच कटती गुज़रती हुई जिंदगी। 
   जिंदगी हाय रे --------------------जिंदगी।
जिनके कंधों पर बैठ कर  पूरी दुनिया घुमी जिसने संसार की सारी खुशियां कदमों में रख दी। उन्हीं के बुढ़ापे में सेवा करने साथ देने से कतराती हुई जिंदगी।
               यदि कभी बिमार पड़ गये तो खाट पर लेट -लेट दवाइयों,इलाजों और सेवाओं के अभाव में रात-दिन तील-तील कर दम तोड़ती हुई जिंदगी।
      ‌जीवन में अपनी इतनी तकलिफें होने के वाबजूद अपनों के खातिर जीने की आरज़ू लिए चेहरे पर झुठी मुस्कानों का मुखौटा पहने अपनों की प्रेम वाणी को सुनने को तरसती हुई जिंदगी।
         जिंदगी हाय रे --------------------जिंदगी।

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